shauryasaga.com
Lieutenant Colonel Narendra Nath Khanna MVC
Maha Veer Chakra

Lieutenant Colonel Narendra Nath Khanna लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना: A Heroic Tale of Valor in the 1965 India-Pakistan War

1965 के भारत-पाक युद्ध के एक वीर नायक की कहानी

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना भारत के उन साहसी सपूतों में से एक हैं, जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपने असाधारण साहस और नेतृत्व से देश का नाम रोशन किया। 20 मई, 1928 को लरकाना, सिंध (वर्तमान में पाकिस्तान) में जन्मे खन्ना को उनकी वीरता और बलिदान के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र, भारत का दूसरा सर्वोच्च सैन्य सम्मान, प्रदान किया गया। यह लेख उनके जीवन, साहस और विरासत की गाथा को समर्पित है, जिनके जम्मू और कश्मीर के उरी क्षेत्र में किए गए पराक्रम आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

प्रारंभिक जीवन

नरेन्द्र नाथ खन्ना
नरेन्द्र नाथ खन्ना MVC

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना का जन्म लरकाना, सिंध में श्री एम.एल. खन्ना के परिवार में हुआ था। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार दिल्ली में आकर बस गया। बचपन से ही उनमें देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा की भावना थी। 12 सितंबर, 1948 को उन्हें सिक्ख रेजीमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ, जिसने उनके सैन्य जीवन की शुरुआत को चिह्नित किया। उनकी कड़ी मेहनत, अनुशासन और नेतृत्व कौशल ने उन्हें जल्द ही एक कुशल सैन्य अधिकारी के रूप में स्थापित कर दिया।

1965 का भारत-पाक युद्ध और उरी क्षेत्र में चुनौती

1965 uri sector
1965 uri sector

1965 का भारत-पाक युद्ध भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस युद्ध में जम्मू और कश्मीर के उरी क्षेत्र में लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना को 2 सिक्ख बटालियन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनकी बटालियन को युद्धविराम रेखा के पार राजा पिकेट पर हमले का आदेश मिला, जिसका उद्देश्य उड़ी-पुंछ बल्ज को जोड़ना था। यह एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि दुश्मन की स्थिति बेहद मजबूत थी।

राजा पिकेट तक पहुंचने का रास्ता बेहद कठिन था। मार्ग पूर्व दिशा में था, और लगभग 200 मीटर का क्षेत्र खड़ा ढाल वाला था। पिकेट पर दुश्मन ने खूब सुरंगें बिछाई थीं और तारों के अवरोध लगाए थे, जिससे हमला और भी जोखिम भरा हो गया था। इसके बावजूद, लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना ने अपने सैनिकों का नेतृत्व करने का दृढ़ संकल्प दिखाया।

युद्ध के मैदान में वीरता

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना
लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना

6 सितंबर, 1965 की सुबह 4 बजे, लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना ने तीन कंपनियों के साथ राजा पिकेट पर हमला शुरू किया। जैसे ही उनकी बटालियन ने युद्धविराम रेखा पार की, वे दुश्मन की विध्वंसक गोलाबारी के बीच आ गए। दिन की रोशनी ने दुश्मन को भारतीय सैनिकों को निशाना बनाने में मदद की, जिसके कारण हताहतों की संख्या बढ़ने लगी। फिर भी, भारतीय सैनिकों ने हार नहीं मानी और साहस के साथ आगे बढ़ते रहे।

कई कठिनाइयों के बावजूद, उनकी कंपनियां तारों के अवरोध तक पहुंच गईं। लेकिन दुश्मन की भारी गोलाबारी और हथगोलों ने सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक दिया। दो आक्रमणकारी कंपनियों को दुश्मन ने पीछे धकेल दिया। इस बीच, एक हथगोले के टुकड़े से लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना के दाहिने कंधे पर गहरी चोट लगी।

बलिदान और नेतृत्व

Sikh_Regiment
Sikh_Regiment

चोटिल होने के बावजूद, लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाया और स्वयं हथगोले लेकर कुछ सैनिकों के साथ आक्रमण का नेतृत्व किया। उनके इस साहसिक कदम ने भारतीय सैनिकों को दुश्मन के बंकरों के कुछ मीटर की दूरी तक पहुंचा दिया। लेकिन तभी उनके पेट में ब्राउनिंग गन की बौछार लगी, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बावजूद, उनकी प्रेरणा से सैनिकों ने हमला जारी रखा और अंततः राजा पिकेट पर कब्जा करने में सफल रहे।

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना ने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन उनकी वीरता और नेतृत्व ने भारतीय सेना को एक महत्वपूर्ण जीत दिलाई।

मरणोपरांत महावीर चक्र

महावीर चक्र MVC
महावीर चक्र MVC

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना के असाधारण साहस, दृढ़ संकल्प और नेतृत्व के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान न केवल उनकी वीरता का प्रतीक है, बल्कि उन सभी सैनिकों के लिए भी एक प्रेरणा है जो देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाते हैं।

नरेन्द्र नाथ खन्ना की विरासत

Lieutenant Colonel Narendra Nath Khanna MVC
Lieutenant Colonel Narendra Nath Khanna MVC

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना की कहानी केवल एक सैनिक की वीरता की गाथा नहीं है, बल्कि यह देशभक्ति, बलिदान और नेतृत्व का एक जीवंत उदाहरण है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। आज भी, भारतीय सेना और देशवासी उनके बलिदान को गर्व के साथ याद करते हैं।

उनका जीवन और बलिदान युवा पीढ़ी को प्रेरित करता है कि वे देश के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए हमेशा तैयार रहें। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि शांति और स्वतंत्रता की कीमत कितनी भारी होती है, और यह उन वीर सैनिकों के बलिदान से ही संभव है जो अपने प्राणों की परवाह किए बिना देश की रक्षा करते हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल नरेन्द्र नाथ खन्ना की वीरता और बलिदान की कहानी भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 1965 के युद्ध में उनके नेतृत्व और साहस ने न केवल राजा पिकेट पर विजय सुनिश्चित की, बल्कि भारतीय सैनिकों के लिए एक मिसाल भी कायम की। उनकी याद में हमें अपने देश के प्रति कर्तव्य और समर्पण की भावना को जीवित रखना चाहिए।

जय हिंद!

also read:-सिपाही केवल सिंह:1962 भारत-चीन युद्ध के अमर वीर, Sepoy Kewal Singh: The immortal hero of the 1962 Indo-China War,

follow us on facebook:-शौर्य गाथा Shaurya Saga | Facebook

 

Related posts

महावीर चक्र जमादार हरदेव सिंह

Chandra kishore

हवलदार थामस फिलिपोस: एक सच्चे वीर की शौर्य गाथा

shauryaadmin

Captain Chander Narayan Singh कप्तान चन्दर नारायण सिंह शौर्य गाथा: महावीर चक्र विजेता (मरणोपरांत)

shauryaadmin

Leave a Comment