Lance Naik Trilok Singh Negi लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी (वीर चक्र): नूरानांग के अमर शहीद
Lance Naik Trilok Singh Negi लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी, वीर चक्र (मरणोपरांत), भारतीय सेना की 4वीं बटालियन, गढ़वाल राइफल्स (4 Garhwal Rifles) के एक ऐसे वीर सपूत थे, जिनकी कहानी भारतीय सैन्य इतिहास में अदम्य साहस और निःस्वार्थ बलिदान का एक स्वर्णिम अध्याय है। उनका शौर्य विशेष रूप से 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, नूरानांग की दुर्गम पहाड़ियों पर पहुंचा, जहां उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।

प्रारंभिक जीवन और सैन्य प्रेरणा
Lance Naik Trilok Singh Negi त्रिलोक सिंह नेगी का जन्म 3 दिसंबर, 1940 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के छोटे से और शांत गाँव थैर में हुआ था। वह एक साधारण लेकिन देशभक्त परिवार से थे। उनके पिता, श्री चितर सिंह, और माता, श्रीमती बिकला देवी, ने उन्हें गढ़वाली संस्कृति के मजबूत मूल्यों—साहस, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा—के साथ पाला। एक पहाड़ी क्षेत्र का निवासी होने के नाते, उनका स्वभाव बचपन से ही कठोर, लचीला और चुनौतियों का सामना करने को तत्पर था।
पहाड़ों के अधिकांश युवाओं की तरह, Lance Naik Trilok Singh Negi त्रिलोक सिंह के मन में भी सेना की वर्दी और देश सेवा का गहरा आकर्षण था। अपने 18वें जन्मदिन के ठीक दिन, 3 दिसंबर, 1958 को, वह भारतीय सेना में शामिल हो गए। उन्हें गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट की 4वीं बटालियन में नियुक्त किया गया। गढ़वाल राइफल्स, अपनी युद्ध परंपराओं और ‘बढ़ता जा’ (आगे बढ़ो) के नारे के लिए जानी जाती है, जिसने युवा त्रिलोक सिंह के सैन्य जुनून को और भी मजबूत किया। अपनी प्रारंभिक सेवा के दौरान, उन्होंने अनुशासन, तीव्र निशानेबाजी और उत्कृष्ट शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन करते हुए तेजी से लांसनायक का पद प्राप्त किया।
1962 का निर्णायक युद्ध और नूरानांग की पोस्ट
जब अक्टूबर 1962 में भारत-चीन युद्ध छिड़ा, तो Lance Naik Trilok Singh Negi की बटालियन को अरुणाचल प्रदेश (तत्कालीन नेफा) के संवेदनशील क्षेत्र में तैनात किया गया था। युद्ध की सबसे क्रूर और निर्णायक लड़ाई में से एक, नूरानांग की लड़ाई, 17 नवंबर, 1962 को लड़ी गई। नूरानांग पुल के पास स्थित यह भारतीय पोस्ट अत्यंत रणनीतिक महत्व रखती थी।
इस दिन, चीनी सेना ने भारतीय ठिकानों पर तीसरी बार भीषण और संगठित हमला किया। हमलावर सेना एक मीडियम मशीन गन (MMG) को भारतीय पोस्ट के बहुत करीब लाने में सफल रही। इस एमएमजी की सटीक और तीव्र गोलीबारी ने भारतीय सैनिकों को प्रभावी ढंग से कार्रवाई करने से रोक दिया और पोस्ट को बचाने का कार्य लगभग असंभव बना दिया। पोस्ट के कमांडर और सैनिकों के लिए यह स्थिति जीवन-मरण का प्रश्न बन गई थी।
वीरता: एमएमजी को नष्ट करने का अभियान
इस संकटपूर्ण क्षण में, Lance Naik Trilok Singh Negi ने एक ऐसा निर्णय लिया जो उन्हें भारतीय सेना के इतिहास में अमर कर गया। उन्होंने अपने साथियों, राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं और राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, के साथ मिलकर दुश्मन की उस खतरनाक एमएमजी पोस्ट को निष्क्रिय करने का संकल्प लिया। यह आत्मघाती मिशन था, जिसमें सफलता की संभावना बहुत कम थी।
तीनों वीरों ने दुश्मन की भयंकर गोलीबारी के बीच रेंगना शुरू किया। लांसनायक नेगी, जो स्टेन गन से लैस थे, ने सबसे आगे रहते हुए दुश्मन पर दबाव वाली और सटीक कवरिंग फायर प्रदान करना शुरू किया। उनकी यह गोलीबारी इतनी प्रभावी थी कि उनके साथियों को एमएमजी ठिकाने के करीब पहुंचने का मौका मिला। गुसाईं और रावत ने तब हथगोले फेंककर उस ठिकाने को ध्वस्त कर दिया, और वहां तैनात चीनी गार्डों को काबू करके उस महत्वपूर्ण एमएमजी पर कब्ज़ा कर लिया। यह भारतीय सेना के लिए एक तात्कालिक और बड़ी सफलता थी।
सर्वोच्च बलिदान (The Supreme Sacrifice)

एमएमजी पर कब्ज़ा करने के बाद, जब राइफलमैन गुसाईं और रावत पकड़ी गई मशीन गन को लेकर वापस सुरक्षित क्षेत्र की ओर आ रहे थे, तब Lance Naik Trilok Singh Negi ने अपने साथियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना स्थान नहीं छोड़ा। वह लगातार दुश्मन पर कवरिंग फायर देते रहे।
इसी दौरान, दुश्मन की ऑटोमैटिक गोलीबारी के एक बर्स्ट से वह गंभीर रूप से घायल हो गए। मृत्यु करीब होने के बावजूद, उन्होंने दर्द को दरकिनार करते हुए, अपनी अंतिम साँस तक फायर करना जारी रखा, ताकि उनके साथी सफलतापूर्वक पीछे हट सकें। उन्होंने अपने कर्तव्य को अपने जीवन से ऊपर रखा और 17 नवंबर, 1962 को रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए। उनके इस अद्वितीय बलिदान ने न केवल उनके साथियों की जान बचाई, बल्कि नूरानांग पोस्ट को कुछ समय के लिए बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मरणोपरांत ‘वीर चक्र’ (Vir Chakra)

Lance Naik Trilok Singh Negi लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी को उनके उत्कृष्ट नेतृत्व, अदम्य साहस और कर्तव्य के प्रति सर्वोच्च बलिदान के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा मरणोपरांत ‘वीर चक्र’ (Vir Chakra) से सम्मानित किया गया। उनकी कहानी आज भी गढ़वाल राइफल्स और भारतीय सेना की हर इकाई में प्रेरणा का स्रोत है।
नवंबर 2025 में, उनके बलिदान के 63 साल बाद, गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट ने नूरानांग दिवस पर उनके पैतृक गाँव में उन्हें ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ प्रदान किया और उनकी स्मृति में निर्मित ‘शौर्य द्वार’ का अनावरण किया। Lance Naik Trilok Singh Negi लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी का नाम हमेशा उन महान सैनिकों में गिना जाएगा जिन्होंने अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी।
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