—— बलिदान दिवस -शौर्यनमन—–
मेजर सुशील आइमा
IC48212H
15-07-1966 – 01-08-1999
कीर्ति चक्र (मरणोपरांत)
वीरांगना – श्रीमती अर्चना देवी
यूनिट – 27 राष्ट्रीय राइफल्स/मराठा लाइट इंफेंट्री
आतंकवाद विरोधी अभियान
मेजर सुशील आइमा का जन्म 15 जुलाई 1966 को जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर के एक प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडित परिवार में श्री माखन लाल आइमा एवं श्रीमती कांता देवी के परिवार में हुआ था। आगे चलकर यह परिवार गुड़गांव में निवास करने गया था। सीनियर सेकेंडरी का परिणाम आने से पूर्व ही उन्होंने NDA की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। 3 वर्ष NDA और एक वर्ष IMA, देहरादून में प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात 2 दिसंबर 1988 को उन्हें भारतीय सेना की कॉर्प्स ऑफ आर्मी एयर डिफेंस में कमीशन प्राप्त हुआ था।
1 अगस्त 1994 को उनका विवाह हुआ था। वर्ष 1997 में उन्हें मेजर के पद पर पदोन्नति प्राप्त हुई थी। वह लंबे, सुदर्शन एवं अत्यंत साहसी युवा थे। उनके साथी उन्हें टाइगर कहते थे। वर्ष 1998 में,उन्हें प्रतिनियुक्ति पर जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद विरोधी अभियानों में जम्मू क्षेत्र के पुंछ सेक्टर में तैनात 27 राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन के साथ संलग्न किया गया था।
31 जुलाई/1अगस्त 1999 की रात्रि मेजर सुशील सो रहे थे। प्रातः उन्हें अवकाश पर घर जाने के लिए दिल्ली प्रस्थान करना था। रात्रि में ही गोपनीय सूत्रों से, बटालियन को विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई की निकट की एक पहाड़ी पर विदेशी आतंकवादियों का एक समूह छिपा हुआ है। इन आतंकवादियों की निकट के कोपरा गांव में, समुदाय विशेष के व्यक्तियों का नरसंहार करने की योजना थी। इस गंभीर स्थिति का विश्लेषण करने के लिए त्वरित एक बैठक की गई, जिसमें मेजर आइमा के नेतृत्व में CORDON & SEARCH ऑपरेशन चला कर इन आतंकवादियों को निष्क्रिय करने का निर्णय लिया गया।
शीघ्र ही, घोर अनुपयुक्त ऋतु और भारी वर्षा में, मेजर आइमा ने पुंछ जिले के कोपरा गांव में ‘ऑपरेशन सुशील’ का नेतृत्व किया। प्रचंड फायरिंग में उन्होंने घने जंगल में छिपे आतंकवादियों को चुनौती दी। जब आतंकवादियों ने उनके सहकर्मी पर हथगोला फेंका, तो विद्युत की गति से मेजर आइमा ने अपने साथी को एक ओर धकेल दिया और तत्क्षण आतंकवादी पर फायर कर उसे मार दिया। उस आतंकवादी को मरा देख द्वितीय आतंकवादी ने AK-47 राइफल से अंधाधुंध गोलियां चलाकर मेजर आइमा के दोनों पैरों को गंभीर रूप से घायल कर दिया।
मेजर आइमा ने अपने जिस सहकर्मी की रक्षा की थी, उसने उनसे वहां से हटने का आग्रह किया, किंतु मेजर आइमा ने वहां से हटना अस्वीकार कर दिया। उन्होंने संघर्ष प्रवृत रखा और द्वितीय आतंकवादी को मार दिया। लगभग सात घंटों तक यह भीषण मुठभेड़ प्रवृत्त रही, जिसमें मेजर आइमा ने तृतीय आतंकवादी को भी मार दिया। किंतु इस फायरिंग में उनके सिर में भी गोलियां लगीं। जिसके परिणामस्वरूप वह तत्क्षण वीरगति को प्राप्त हो गए।
मेजर आइमा के बलिदान होने के पश्चात यह तथ्य उजागर हुआ कि वास्तव में वह आतंकवादियों की HIT LIST में थे। लगभग एक सप्ताह पश्चात जब एक अज्ञात व्यक्ति ने उनके पिता को फोन करके अहंकारपूर्वक कहा, ‘आइमा साहब, अब कैसा लग रहा है, समझ में आ गया’ ?’ और उनके पिता ने फोनकर्ता को प्रत्युत्तर देते हुए कहा, ‘नामुराद, मैंने तुझे सुन लिया, अब तू सुन। तुम चाहे कितने भी हो, नापाक इरादे में कभी सफल नहीं होगे। और बहुत दिन तुम जी भी नहीं पाओगे क्योंकि तुम्हारा खात्मा करने अब कश्मीर के हर घर में आइमा पैदा हो रहा है।’
मेजर आइमा द्वारा प्रदर्शित वीरता, नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण अद्वितीय था। उनकी असाधारण वीरता, नेतृत्व, सौहार्द और सर्वोच्च बलिदान के लिए, उन्हें मरणोपरांत “कीर्ति चक्र” से सम्मानित किया गया था। गुड़गांव के सेक्टर 23 के देवीलाल पार्क में, इनका स्मारक बना हुआ है।
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