—— बलिदान दिवस -शौर्यनमन—–
लेफ्टिनेंट रविंदर सिंह छिकारा
IC58158N
06-08-1976 – 19-07-2000
कीर्ति चक्र (मरणोपरांत)
यूनिट – 6 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट
ऑपरेशन पराक्रम
लेफ्टिनेंट रविंदर सिंह छिकारा का जन्म 6 अगस्त 1976 को, हरियाणा के झज्जर जिले की झज्जर तहसील के खेरी आसरा नाम के लघु से ग्राम में डॉ. रतन सिंह छिकारा एवं श्रीमती कमला देवी के परिवार में हुआ था। बालपन में वह भारतीय सेना के तीन स्तंभों कैवेलरी, आर्टिलरी और सबसे कठिनतम इंफेट्री का प्रतिनिधित्व करते अपने तीनों ताऊजी से सैनिकों की वीरता की कहानियां अत्यंत मनोयोग से श्रवण करते थे। अतः उन्होंने इंफेट्री में जाने का निश्चय किया। एनडीए के साथ-साथ आईएमए के समय भी वे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुने गए थे। 12 दिसंबर 1998 को उन्हें भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की 6 बटालियन में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त हुआ था।
एक समय अवकाश पूर्ण होने के पश्चात, उनके घर से प्रस्थान करते समय लेफ्टिनेंट रविंदर सिंह की माँ ने उन्हें कहा, “बेटा अपना ध्यान राखिए”। वह मुस्कुराए और विनोद में कहा, “माँ, तू गादड़ी (मादा सियार) मत बण, तन्नै शेर जाम राख्या स”। माँ ने कहा, “बेटा लड़ाई का मामला स”। उनके अंतिम अमर शब्द थे, “माँ, लड़ाई में योद्धा जाते हैं, गादड़ (सियार) नहीं जाते” और आगे चलकर लेफ्टिनेंट रविंदर का कथन सत्य सिद्ध हुआ।
19 जुलाई 2000 को प्रातः 8.15 बजे, जम्मू कश्मीर के राजौरी जिले के काकोरा गांव में, लेफ्टिनेंट छिकारा के नेतृत्व में, 16 सिख बटालियन के साथ संयुक्त ऑपरेशन में, घातक प्लाटून ने SEARCH & DESTROY अभियान आरंभ किया। जैसे ही, प्लाटून एक संदिग्ध घर के निकट पहुंची, उस घर में छिपे हरकत-उल-जेहाद-इस्लामी (HUJI) के दुर्दांत आतंकवादियों ने प्लाटून पर उन्नत स्वचालित शस्त्रों और रॉकेट से आक्रमण कर दिया।
अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की घोर उपेक्षा करते हुए, लेफ्टिनेंट रविंदर ने सर्वप्रथम यह सुनिश्चित किया कि कोई नागरिक इस फायरिंग में ना घिर जाए। आगामी मुठभेड़ में, अपने धरातलीय अनुभव का कुशल उपयोग करते हुए और विरल मशीन गन फायर की आड़ में, रेंगते हुए वह संदिग्ध घर के वातायन (WINDOW) तक गए। आकस्मिक, वह विद्युत की गति से उछले और अपनी एके-47 राइफल से गोलियां चला कर, सुक्षाबलों पर रॉकेट (Rocket Propelled Grenade) फायर करने को तत्पर एक आतंकवादी को मार दिया।
अपने साथी को मृत देखकर घर के भीतर छिपे दो आतंकवादी रक्षा के प्रयास में, एक नाले के साथ-साथ ऊपर की ओर भागे। वे आतंकवादी इससे अनभिज्ञ थे कि लेफ्टिनेंट छिकारा और उनके सैनिक उन्मादियों की भांति उनके पीछे दौड़ रहे थे। लेफ्टिनेंट छिकारा आतंकवादियों पर झपट पड़े और उन्होंने भागने में बाधा बन रही अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट को भी उतार कर फेंक दिया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए और अपने प्राणों की रक्षा के लिए आकस्मिक वे आतंकवादी एक शिलाखंड के पीछे कूद गए और उनका पीछा कर रहे दल पर प्रचुर मात्रा में गोलियां चलाईं।
गंभीर संकट पर ध्यान नहीं देते हुए लेफ्टिनेंट छिकारा एक शिलाखंड के पीछे कूद गए और अति निकट से द्वितीय आतंकवादी को भी मार दिया। अन्य आतंकवादियों ने प्रत्युत्तर में फायरिंग की और शिलाखंडों के पीछे लाभकारी स्थिति ले ली। लेफ्टिनेंट छिकारा ने आतंकवादियों का पीछा किया और तृतीय आतंकवादी को भी मार दिया, किंतु, एक आतंकवादी ने भागते हुए गोलियां चलाईं जिसके उनकी छाती में गोली लग गई। घायल और अत्यधिक रक्त बहते हुए भी वह उस आतंकवादी पर झपटे और आमने-सामने के शारीरिक संघर्ष में चतुर्थ आतंकवादी को भी मार दिया। जब वह पंचम आतंकवादी को मारने के प्रयास में थे, उसी समय किसी छिपे हुए आतंकवादी ने उनपर अंधाधुंध फायरिंग की। पुनः उनकी छाती पर गोलियां लगीं और वह वहीं वीरगति को प्राप्त हो गए।
अपने युवा अधिकारी के अनुकरणीय साहस और नेतृत्व से प्रेरित होकर उनके सैनिकों ने तीन आतंकवादियों को और मार दिया, जिसके परिणामस्वरूप हूजी का जम्मू क्षेत्र का एरिया कमांडर व 6 विदेशी आतंकवादी मारे गए और उनसे प्रचुर मात्रा में विदेश निर्मित शस्त्र और गोला-बारूद पाए गए।
इस भीषण मुठभेड़ में लेफ्टिनेंट रविंदर सिंह ने, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की घोर उपेक्षा करते हुए, कर्तव्य से परे विशिष्ट वीरता, युद्ध की अदम्य भावना और कर्तव्य के प्रति समर्पण का प्रदर्शन किया एवं सर्वोच्च बलिदान दिया। उन्हें मरणोपरांत “कीर्ति चक्र” से सम्मानित किया गया।
हरियाणा सरकार द्वारा उनके सम्मान में झज्जर में बस स्टेंड के समीप जहांआरा बाग के निकट चौक पर उनकी प्रतिमा स्थापित किया गया, जिसे अब “शहीद रविंदर सिंह छिकारा चौक” के नाम से जाना जाता है।
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