लांस नायक रण बहादुर गुरुंग: साहस, पराक्रम और सर्वोच्च बलिदान की अमर कहानी
भारतीय सेना के इतिहास में ऐसे कई अनगिनत नायक हुए हैं, जिनकी वीरता की कहानियाँ सीमाओं से परे जाकर मानवता और शांति के मूल्यों को स्थापित करती हैं।
ऐसी ही एक अविस्मरणीय गाथा है लांस नायक रण बहादुर गुरुंग की, जिन्होंने सुदूर अफ्रीका के कांगो में संयुक्त राष्ट्र (UN) शांति मिशन के दौरान अपनी अद्भुत बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा से न केवल अपनी रेजिमेंट, बल्कि पूरे भारत का गौरव बढ़ाया। उनका सर्वोच्च बलिदान आज भी हमें प्रेरणा देता है।

नेपाल से भारतीय सेना तक का सफर
लांस नायक रण बहादुर गुरुंग का जन्म 06 अक्तूबर, 1935 को नेपाल के लामजुंग जिले के गाँव पारवरीकत में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री कृष्ण बहादुर गुरुंग था। एक गोरखा परिवार में पले-बढ़े गुरुंग में बचपन से ही साहस और समर्पण की भावना कूट-कूट कर भरी थी।
इसी भावना के साथ, उन्होंने 06 अक्तूबर, 1952 को, अपनी 17वीं वर्षगांठ के दिन, भारतीय सेना की प्रतिष्ठित 3/1 गोरखा राइफल्स में कदम रखा। यह भर्ती एक साधारण सैनिक के असाधारण सफर की शुरुआत थी, जिसने उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार तक पहुँचाया।
कांगो मिशन: शांति की स्थापना की चुनौती (1961)

वर्ष 1961 का समय था, जब मध्य अफ्रीका का देश कांगो (तत्कालीन कटांगा) गंभीर आंतरिक संघर्ष से जूझ रहा था। संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सदस्य राष्ट्रों से सैन्य सहायता की अपील की। भारत ने इस वैश्विक जिम्मेदारी को समझते हुए तुरंत प्रतिक्रिया दी और शांति स्थापित करने के लिए एक पूरी ब्रिगेड कांगो भेजी। जिसमे लांस नायक रण बहादुर गुरुंग भी शामिल थे |
1961 की शुरुआत तक, कटांगा की विद्रोही सेनाओं, जिन्हें जेंडरमेरी कहा जाता था, ने एलिजाबेथविले जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कई मार्ग-अवरोध (रोडब्लॉक) खड़े कर दिए थे और कई रणनीतिक स्थानों पर कब्ज़ा जमा लिया था।
05 दिसम्बर तक, जेंडरमेरी को अतिरिक्त दो बटालियनें मिल चुकी थीं, जिसने उनकी शक्ति और आक्रामकता को बहुत बढ़ा दिया था। इस बढ़ते खतरे को समाप्त करने और क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं ने निर्णायक सैन्य कार्रवाई करने का निर्णय लिया।
06 दिसम्बर, 1961: शौर्य का अविस्मरणीय प्रदर्शन

सैन्य कार्रवाई के दौरान, 06 दिसम्बर को कटांगा में शत्रु के ठिकानों पर हमला बोलते समय, 3/1 गोरखा राइफल्स की बटालियन को जेंडरमेरी की मशीन गन और राइफल्स की तेज और सटीक गोलाबारी ने बुरी तरह घेर लिया। बटालियन आगे बढ़ने में मुश्किल महसूस कर रही थी।
ठीक इसी नाजुक समय पर, लांस नायक रण बहादुर गुरुंग ने वह असाधारण पहल की, जिसने युद्ध का रुख मोड़ दिया। उस समय वह अपनी प्लाटून की एक सेक्शन के द्वितीय कमान अफसर थे।
- अकेले हमला: बिना किसी की परवाह किए, रण बहादुर गुरुंग ने अपनी ब्रेन गन (लाइट मशीन गन) संभाली। उन्होंने दुश्मन की भारी गोलीबारी के बीच लगभग 300 मीटर तक रेंगते हुए, अपनी जान जोखिम में डालकर, शत्रु की एक मुख्य और मजबूत चौकी के बिल्कुल पास तक पहुँचने का जोखिम उठाया।
- नौ दुश्मनों का सफाया: दुश्मन की चौकी तक पहुँचकर, रण बहादुर गुरुंग ने अपनी ब्रेन गन से अचूक और घातक हमला किया। इस एकल कार्रवाई में, उन्होंने उस पूरी चौकी को ध्वस्त कर दिया और वहाँ तैनात सभी 9 शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस साहसिक कार्य ने बटालियन के लिए आगे बढ़ने का रास्ता खोल दिया और दुश्मन के एक महत्वपूर्ण प्रतिरोध बिंदु को समाप्त कर दिया।
- सर्वोच्च बलिदान: रण बहादुर गुरुंग की इस सफलता ने बटालियन को तो बढ़त दिलाई, लेकिन इसी बीच, उनका दल पास की एक पहाड़ी पर स्थित दुश्मन की मीडियम मशीन गन की तीव्र गोलाबारी के घेरे में आ गया। शत्रु की मशीन गन की बौछार में, राष्ट्र और शांति के लिए अपने कर्तव्य को निभाते हुए, लांस नायक रण बहादुर गुरुंग ने तत्काल वीरगति प्राप्त की।
अमर सम्मान: महावीर चक्र (मरणोपरांत)

लांस नायक रण बहादुर गुरुंग ने जिस अदम्य साहस, असाधारण कर्तव्यनिष्ठा और अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया, वह गोरखा रेजिमेंट की ‘कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो’ (कायर होने से मरना बेहतर है) की भावना को चरितार्थ करता है। राष्ट्र ने उनके इस अविस्मरणीय बलिदान को सलाम किया।
उन्हें उनकी उत्कृष्ट वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र (MVC) से सम्मानित किया गया। यह सम्मान न केवल उनके व्यक्तिगत शौर्य का प्रतीक है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शांति मिशनों में भारतीय सैनिकों के बेजोड़ योगदान को भी रेखांकित करता है।

लांस नायक रण बहादुर गुरुंग की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि भारत के वीर जवान सिर्फ देश की सीमाओं की ही नहीं, बल्कि वैश्विक शांति की रक्षा के लिए भी सदैव तत्पर रहते हैं। उनका त्याग और बलिदान पीढ़ियों तक प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
जय हिन्द !
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