

मेजर सोमनाथ शर्मा (आई सी 521) का जन्म 31 जनवरी, 1923 को दध, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम मेजर जनरल ए. एन. शर्मा था। 22 फरवरी, 1942 को उन्हें कुमाऊं रेजीमेंट में कमीशन मिला। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अराकान आपरेशन में भाग लिया था। परम वीर चक्र से सम्मानित होने वाले वे पहले भारतीय थे। उनके भाई जनरल बी. एन. शर्मा 1988 से 1990 तक भारतीय सेनाध्यक्ष के पद पर आसीन रहे।
22 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तानी कबायलियों ने जम्मू और कश्मीर पर हमला किया। यह ताकत के बल पर कश्मीर घाटी को हड़पने की पाकिस्तानी चाल थी। कश्मीर 26 अक्तूबर को भारत का अभिन्न अंग बन चुका था अतः उसकी रक्षा की जिम्मेदारी भारत की थी। इसलिए कश्मीर घाटी की ओर तेजी से बढ़ते हुए कबायली हमले को रोकने के लिए भारत ने श्रीनगर में अपनी फौजें उतारी। भारतीय सेना का पहला जत्था 27 अक्तूबर को सुबह ठीक समय पर श्रीनगर पहुंच गया और उसने दुश्मन को श्रीनगर के परिसर के बाहर ही रोक दिया। 4 कुमाऊं की ‘डी’ कंपनी मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में 31 अक्तूबर को हवाई मार्ग से श्रीनगर भेजी गई थी। जब मेजर शर्मा की कंपनी को श्रीनगर जाने का आदेश मिला था, उस समय उनके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था। हाकी खेलते समय मैदान में चोट लग गई थी और प्लास्टर हटने तक उन्हें आराम करने की सलाह दी गई थी। लेकिन उन्होंने इस संकट के समय में अपनी कंपनी के साथ जाने का आग्रह किया जिसे स्वीकार कर लिया गया।इस बीच कबायलियों द्वारा श्रीनगर पर किए गए हमले को 1 सिख ने पाटन में ही असफल कर दिया था।
दुश्मन ने कश्मीर घाटी में घुसने के लिए अब छापामार रणनीति अपनाई, किंतु भारतीय सैनिकों के पहुंच जाने के कारण श्रीनगर और उसके आसपास के इलाके की सुरक्षा व्यवस्था अब और बेहतर हो गई थी। 3 नवंबर को उत्तर दिशा से श्रीनगर की तरफ आ रहे कबायलियों का पता लगाने के लिए 3 कम्पनियों के एक मजबूत लड़ाकू गश्ती दल को बड़गाम क्षेत्र में टोह लेने के लिए भेजा गया। 9:30 बजे तक सैनिकों ने बड़गाम में अपना मजबूत बेस स्थापित कर लिया। खोज के दौरान जब दुश्मन कहीं नहीं दिखाई पड़ा तो 14:00 बजे तक दो कंपनियां श्रीनगर वापस आ गई। मेजर शर्मा के नेतृत्व वाली ‘डी’ कंमनी को, जिसने बड़गाम के दक्षिण में मोर्चा संभाला था, 15:00 बजे तक वहां रूकने को कहा गया।14:35 बजे ‘डी’ कंपनी पर बड़गाम के कुछ मकानों से गोलीबारी होने लगी। कंपनी ने जवाबी गोलीबारी नहीं की क्योंकि उससे निर्दोष गांव वालों के मरने का खतरा था। मेजर शर्मा इस खतरे के बारे में ब्रिगेड कमांडर से बात कर ही रहे थे कि उनके मोर्चे के पश्चिम स्थित खाई की ओर से करीब 700 दुश्मन सैनिक आते हुए दिखाई पड़े। पास आते ही उन्होंने कंपनी पर छोटे हथियारों, मोर्टारों और स्वचालित शस्त्रों से हमला बोल दिया। शत्रु की इस अचूक और विनाशकारी गोलीबारी में कई भारतीय सैनिक हताहत हुए। मेजर शर्मा ने श्रीनगर शहर और वहां के हवाई अड्डे पर आने वाले खतरे को एवं स्थिति की गंभीरता को समझा। उन्होंने अपनी कंपनी को दृढ़तापूर्वक लड़ने को कहा। दुश्मन की गोलीबारी के चलते उन्होंने अपने विमानों के लक्ष्य के निर्देशन के लिए संकेत पैनल भी लगाए।विषम परिस्थितियों के बावजूद कंपनी 6 घंटे तक डटी रही। सैनिकों के बड़ी संख्या में हताहत होने के कारण जब कंपनी की गोलीबारी की क्षमता कमजोर पड़ने लगी तब मेजर शर्मा, बाएं हाथ पर प्लास्टर चढ़े होने के बावजूद, मैगजीन भरकर लाइट मशीन गन चालकों को देते रहे। जब वे दुश्मन से जूझ रहे थे तभी एक मोर्टार सेल उनके पास स्थित गोला-बारूद के ढेर पर आकर फटा। मेजर शर्मा, जिन्होंने अभी अपने जीवन के 25 वर्ष भी पूरे नहीं किए थे, इसी विस्फोट में वीर गति को प्राप्त हुए। ब्रिगेड मुख्यालय को भेजे गए अपने अंतिम संदेश में उन्होंने कहा था- ‘मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा और अंतिम सैनिक और अंतिम गोली तक लड़ता रहूंगा।’ बड़गाम की इस लड़ाई में ‘डी’ कंपनी के मेजर शर्मा, एक जेसीओ और अन्य 20 सैनिक मारे गए। लेकिन उनकी कुर्बानी बेकार नहीं गई। इन वीर सैनिकों ने बहुत ही नाजुक परिस्थिति में श्रीनगर और हवाई अड्डे की तरफ बढ़ते हुए दुश्मन को कई घंटों तक रोके रखा।
मेजर सोमनाथ शर्मा ने श्रेष्ठ नेतृत्व और उच्च साहस का एक आदर्श स्थापित किया। मरणोपरांत उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
जय हिन्द जय भारत
(साभार – गूगल , पराक्रम गाथा सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, विजय सोहनी, पेन टुडे, #shauryanamanfoundation)


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जय हिंद
Jay Hind