शहीद भीम सिंह शेखावत: एक युवा अग्निवीर की अमर वीरगाथा | राजस्थान का गौरव, उत्तराखंड की त्रासदी में शहादत
राजस्थान के भौनावास गांव के 19 वर्षीय जवान की प्रेरणादायक कहानी। उत्तराखंड क्लाउडबर्स्ट में शहादत, राजपूताना राइफल्स का गौरव। शहीदों को सलाम!
देश की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले उन अनगिनत नायकों में से एक थे भीम सिंह शेखावत। मात्र 19 वर्ष की उम्र में उन्होंने जो कुछ किया, वह न सिर्फ राजस्थान के भौनावास गांव का, बल्कि पूरे देश का गौरव है। अग्निवीर योजना के तहत सेना में शामिल हुए इस युवा जवान की जिंदगी एक प्रेरणा है – सपनों से लेकर शहादत तक की छोटी लेकिन साहसिक यात्रा। आइए, जानते हैं शहीद भीम सिंह शेखावत की जीवनी, जो न सिर्फ उनकी बहादुरी की कहानी है, बल्कि देशभक्ति की मिसाल भी।

प्रारंभिक जीवन: राजस्थान की मिट्टी से निकला वीर पुत्र
भीम सिंह शेखावत का जन्म राजस्थान के जयपुर जिले के कोटपूतली-बहरोड़ क्षेत्र में स्थित भौनावास गांव में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार में पले-बढ़े भीम सिंह बचपन से ही अनुशासित और साहसी थे। गांव की मिट्टी में लिपटे उनके सपने बड़े थे – देश की सेवा करना और परिवार का नाम रोशन करना। स्थानीय स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ वे खेलकूद और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते थे।
19 वर्ष की छोटी उम्र में भीम सिंह ने जीवन के कठिन संघर्ष देखे थे। लेकिन उनकी आंखों में हमेशा एक चमक बनी रही – सेना में शामिल होने की। परिवार के सदस्य बताते हैं कि भीम सिंह हमेशा कहते थे, “मैं देश के लिए कुछ करना चाहता हूं।” यह जज्बा ही था जो उन्हें अग्निवीर योजना की ओर ले गया। भौनावास जैसे छोटे गांव से निकलकर दिल्ली के नजदीक बसे इस युवा ने साबित कर दिया कि साहस किसी बड़े शहर की मोहताज नहीं होता।

सेना में प्रवेश: अग्निवीर के रूप में नई शुरुआत
अक्टूबर 2024 में, भीम सिंह शेखावत ने अपने सपनों को हकीकत में बदल लिया। 28 अक्टूबर को वे भारतीय सेना की प्रतिष्ठित 14 राजपूताना राइफल्स में अग्निवीर के रूप में भर्ती हुए। यह उनकी पहली पोस्टिंग थी, और वे उत्तराखंड के हर्षिल घाटी क्षेत्र में तैनात हो गए। अग्निवीर योजना के तहत चार वर्ष की सेवा में वे न सिर्फ प्रशिक्षण में उत्कृष्ट रहे, बल्कि साथियों के बीच भी प्रेरणा स्रोत बने।
सेना की वर्दी पहनते ही भीम सिंह ने अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा का पर्याय बन जाना चुना। राजपूताना राइफल्स की परंपरा – “वी शल नॉट” (हम कभी हारेंगे नहीं) – को उन्होंने अपने जीवन में उतार लिया। यह दौर था जब भीम सिंह न सिर्फ एक सैनिक बने, बल्कि एक जिम्मेदार भाई, बेटे और देशभक्त भी।
शहादत की अमिट कहानी: उत्तराखंड की त्रासदी में बलिदान

5 अगस्त 2025 का वह काला दिन – उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में हर्षिल घाटी के धराली क्षेत्र में बादल फटने से भयानक आपदा ने सब कुछ उजाड़ दिया। भारी बारिश और भूस्खलन ने आर्मी कैंप को अपनी चपेट में ले लिया। इस हादसे में कई जवान लापता हो गए, जिनमें शामिल थे अग्निवीर भीम सिंह शेखावत।
भीम सिंह अपने साथियों को बचाने के प्रयास में सबसे आगे थे। वे बचाव कार्य में जुटे रहे, लेकिन प्रकृति की मार ने उन्हें निगल लिया। 70 दिनों तक सर्च ऑपरेशन चला, और आखिरकार अक्टूबर 2025 के मध्य में उनका पार्थिव शरीर बरामद हुआ। डीएनए जांच से उनकी पहचान हुई, और तिरंगे में लिपटे लाल को राजस्थान लाया गया। यह शहादत न सिर्फ एक व्यक्तिगत बलिदान थी, बल्कि देश की सेवा में अग्निवीरों की निष्ठा का प्रतीक बनी।
उत्तराखंड क्लाउडबर्स्ट जैसी आपदाओं में सेना का योगदान हमेशा याद किया जाता है, और भीम सिंह की कहानी उसकी जीती-जागती मिसाल है।
विरासत और सम्मान: गांव से राष्ट्र तक श्रद्धांजलि
15 अक्टूबर 2025 को भौनावास गांव में भीम सिंह को पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। पूरा गांव आंसुओं में डूब गया। राजस्थान सरकार के कौशल नियोजन एवं उद्यमिता मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
भीम सिंह की विरासत आज भी जीवित है। उनके परिवार को सरकार से सहायता मिली, और गांव में उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाने की योजना है। यह कहानी युवाओं को प्रेरित करती है कि अग्निवीर योजना न सिर्फ नौकरी है, बल्कि देशभक्ति का माध्यम भी। शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाता – यह हमें मजबूत बनाता है।

जय हिंद, शहीदों को सलाम!
शहीद अग्निवीर भीम सिंह शेखावत की जिंदगी छोटी थी, लेकिन उनका योगदान अमर। राजस्थान के इस वीर पुत्र ने साबित कर दिया कि सच्ची देशभक्ति उम्र या परिस्थितियों से ऊपर होती है। आइए, हम सभी उनके बलिदान को याद रखें और देश सेवा के प्रति समर्पित रहें।
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जय हिंद!
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