राइफलमैन पाती राम गुरुंग
राइफलमैन पाती राम गुरुंग की वीरता और बलिदान की कहानी भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई है। 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनके अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान ने उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह ब्लॉग उनकी प्रेरणादायक कहानी को विस्तार से प्रस्तुत करता है, जो न केवल उनके शौर्य को दर्शाता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

प्रारंभिक जीवन और सेना में भर्ती
पाती राम गुरुंग का जन्म 8 सितंबर, 1948 को नेपाल के लामजुंग जिले के बर्दैन गांव में हुआ था। उनके पिता, श्री पदम बहादुर गुरुंग, एक साधारण परिवार से थे। बचपन से ही पाती राम में देशसेवा का जज्बा था। मात्र 15 वर्ष की आयु में, 8 मार्च, 1963 को उन्हें 5/1 गोरखा राइफल्स में एक बॉय के रूप में भर्ती किया गया। गोरखा सैनिकों की वीरता और अनुशासन की गौरवशाली परंपरा में शामिल होकर, पाती राम ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान अपनी क्षमता और समर्पण का परिचय दिया।
1971 का भारत-पाक युद्ध और उथाली का युद्धक्षेत्र
1971 का भारत-पाक युद्ध भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस युद्ध में पूर्वी मोर्चे पर 5/1 गोरखा राइफल्स को 41 माउंटेन ब्रिगेड के साथ तैनात किया गया था। बटालियन को कुश्तिया जिले (वर्तमान बांग्लादेश) में उथाली नामक एक मजबूत दुश्मन ठिकाने पर कब्जा करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया। यह ठिकाना दुश्मन की भारी मशीन गनों और बंकरों से सुरक्षित था, जिसके कारण इसे जीतना अत्यंत चुनौतीपूर्ण था।
दुश्मन की मशीन गनों की तीव्र और सटीक गोलाबारी ने गोरखा सैनिकों की प्रगति को रोक दिया था। उथाली पर चढ़ाई के दौरान स्थिति इतनी जटिल थी कि किसी भी सैनिक के लिए आगे बढ़ना जानलेवा साबित हो सकता था। लेकिन युद्ध के मैदान में असाधारण साहस और निस्वार्थ भावना ही विजय की कुंजी होती है, और राइफलमैन पाती राम गुरुंग ने इसे साकार कर दिखाया।
असाधारण वीरता का प्रदर्शन

उथाली के युद्धक्षेत्र में, राइफलमैन पाती राम गुरुंग अपनी कंपनी की मीडियम मशीन गन टुकड़ी के साथ थे। उनकी कंपनी एक दुश्मन बंकर से भारी मशीन गन की गोलाबारी की चपेट में आ गई, जिसने पूरी कार्रवाई को ठप कर दिया। इस बंकर को नष्ट करना युद्ध की सफलता के लिए अनिवार्य था, लेकिन यह कार्य अत्यंत जोखिम भरा था।
पाती राम ने स्थिति की गंभीरता को समझा और बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी जान की परवाह किए बिना आगे बढ़ने का फैसला किया। उन्होंने दुश्मन की मशीन गन चौकी पर सीधा आक्रमण किया। इस दौरान, दुश्मन की मशीन गन की बौछार ने उन्हें घातक रूप से घायल कर दिया। लेकिन उनकी इच्छाशक्ति अडिग थी। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उन्होंने मशीन गन पर प्रहार किया और उसे नष्ट करने में सफल रहे। इस प्रक्रिया में, उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन उनकी वीरता ने उनकी कंपनी को आगे बढ़ने का रास्ता साफ कर दिया।
मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित

राइफलमैन पाती राम गुरुंग की इस असाधारण वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। महावीर चक्र भारत का दूसरा सर्वोच्च सैन्य सम्मान है, जो युद्ध के मैदान में असाधारण साहस और वीरता के लिए प्रदान किया जाता है। पाती राम की इस वीरगाथा ने न केवल उनकी बटालियन, बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया।
पाती राम गुरुंग की विरासत

राइफलमैन पाती राम गुरुंग की कहानी केवल एक सैनिक की वीरता की कहानी नहीं है; यह निस्वार्थ देशभक्ति और सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है। उनकी वीरता ने यह साबित किया कि साहस और समर्पण के सामने कोई भी बाधा अजेय नहीं है। आज भी, उनकी कहानी भारतीय सेना के सैनिकों और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि देश की रक्षा के लिए सैनिक जिस समर्पण और साहस के साथ मैदान में उतरते हैं, वह अतुलनीय है। पाती राम गुरुंग जैसे वीर सैनिकों की कहानियां हमें अपने देश के प्रति कर्तव्य और सम्मान की भावना को जीवित रखने की प्रेरणा देती हैं।
राइफलमैन पाती राम गुरुंग की कहानी 1971 के युद्ध के उन अनगिनत नायकों में से एक है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा की। उनकी वीरता और बलिदान हमें यह याद दिलाते हैं कि स्वतंत्रता की कीमत कितनी भारी होती है। हम उनके साहस को नमन करते हैं और उनकी स्मृति को हमेशा अपने दिलों में संजोकर रखेंगे।
जय हिंद!
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