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कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत
Maha Veer Chakra

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत Captain Devinder Singh Ahlawat Hero of 1971 India-Pak war : महावीर चक्र

परिचय

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत भारतीय सेना के उन नायकों में से एक हैं, जिनकी वीरता और बलिदान की कहानी हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान डेरा बाबा नानक पुल पर अपनी असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 4 जुलाई, 1947 को हरियाणा के रोहतक जिले के गाँव गोछी में जन्मे कप्तान अहलावत एक सैन्य परिवार से थे, जहाँ चार पीढ़ियों से देश सेवा की परंपरा चली आ रही थी। यह ब्लॉग उनकी प्रेरणादायक कहानी, उनके साहसिक कारनामों और उनकी शहादत की गौरव गाथा को समर्पित है।

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत
कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत  Mahaveer chakra

प्रारंभिक जीवन और सैन्य परंपरा

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहाँ सैन्य सेवा सम्मान और कर्तव्य का प्रतीक थी। उनके पिता, लेफ्टिनेंट कर्नल एस.सी. अहलावत, और चाचा, दोनों ही भारतीय सेना में कर्नल के पद पर रहे थे। गोछी गाँव में पले-बढ़े देविन्दर बचपन से ही सैन्य जीवन की कहानियों से प्रभावित थे। उनके परिवार की सैन्य परंपरा ने उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित किया। 16 दिसंबर, 1967 को, उन्हें डोगरा रेजीमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ, और इस तरह उन्होंने अपने परिवार की गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

उनका व्यक्तित्व न केवल साहसिक था, बल्कि वे एक समर्पित और अनुशासित सैनिक भी थे। डोगरा रेजीमेंट में शामिल होने के बाद, उन्होंने अपने नेतृत्व और समर्पण से सभी का सम्मान अर्जित किया। उनकी सैन्य यात्रा उस समय अपने चरम पर पहुँची, जब 1971 का भारत-पाक युद्ध शुरू हुआ, जिसने उनकी वीरता को विश्व के सामने ला खड़ा किया।

1971 का भारत-पाक युद्ध: एक महत्वपूर्ण मोड़

1971 का भारत-पाक युद्ध: एक महत्वपूर्ण मोड़

1971 का भारत-पाक युद्ध भारत के सैन्य इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है। इस युद्ध में भारतीय सेना ने अपनी रणनीतिक कुशलता और साहस का परिचय दिया। कप्तान अहलावत 10 डोगरा बटालियन का हिस्सा थे, जिसे पश्चिमी मोर्चे पर पंजाब क्षेत्र में तैनात किया गया था। 5 सितंबर, 1971 की रात को, उनकी बटालियन को डेरा बाबा नानक पुल के पूर्वी किनारे पर कब्जा करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया। यह पुल रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह दुश्मन के लिए एक महत्वपूर्ण आपूर्ति मार्ग था।

दुश्मन ने इस क्षेत्र की रक्षा के लिए व्यापक तैयारी की थी। कंक्रीट के बंकरों और पिलबॉक्स में टैंक-रोधी तोपें, मध्यम मशीन गनें, और भारी व हल्के स्वचालित हथियार तैनात किए गए थे। इन रक्षात्मक उपायों ने भारतीय सेना के लिए इस क्षेत्र पर कब्जा करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण बना दिया था।

अद्वितीय साहस और नेतृत्व

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत
कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत Mahaveer chakra

कप्तान अहलावत को ‘सी’ कंपनी का नेतृत्व सौंपा गया था, जिसे लिंक बांध और रेल बांध पर आक्रमण करने का आदेश मिला था। जैसे ही उनकी कंपनी ने हमला शुरू किया, दुश्मन की मध्यम मशीन गन से तीव्र गोलाबारी शुरू हो गई। कंक्रीट पिलबॉक्स से हो रही यह गोलाबारी उनकी कंपनी को आगे बढ़ने से रोक रही थी। पिलबॉक्स को नष्ट करने के सभी प्रयास विफल हो रहे थे, और इस दौरान कई सैनिक हताहत हो गए।

इस कठिन परिस्थिति में कप्तान अहलावत ने असाधारण साहस का परिचय दिया। वे जानते थे कि यदि पिलबॉक्स को नष्ट नहीं किया गया, तो मिशन असफल हो सकता था। अपनी जान की परवाह न करते हुए, उन्होंने एक साहसिक निर्णय लिया। वे तेजी से पिलबॉक्स की ओर बढ़े और मशीन गन की गर्म नाल को अपने दाहिने हाथ से पकड़ लिया। इस दौरान, उन्होंने अपने बाएं हाथ से पिलबॉक्स के अंदर एक हथगोला फेंका, जिससे मशीन गन और पिलबॉक्स पूरी तरह नष्ट हो गया।

इस साहसिक कार्रवाई ने उनकी कंपनी को आगे बढ़ने का रास्ता साफ कर दिया। ‘सी’ कंपनी ने इसके बाद तेजी से हमला किया और अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया। लेकिन इस वीरतापूर्ण प्रयास में कप्तान अहलावत को छह गंभीर गोली के घाव लगे। इसके बावजूद, उन्होंने अंतिम सांस तक मशीन गन की नाल पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ी। उनकी यह शहादत भारतीय सेना के बलिदान और वीरता की भावना का प्रतीक बन गई।

महावीर चक्र: एक अमर सम्मान

महावीर चक्र MVC
महावीर चक्र MVC

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत की इस असाधारण वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है, जो केवल उन सैनिकों को दिया जाता है, जिन्होंने असाधारण साहस और देशभक्ति का परिचय दिया हो। उनकी शहादत ने न केवल डेरा बाबा नानक पुल पर कब्जे को सुनिश्चित किया, बल्कि भारतीय सेना की वीरता को विश्व पटल पर स्थापित किया।

प्रेरणा

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत
कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत

कप्तान अहलावत की कहानी केवल एक सैनिक की कहानी नहीं है; यह देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की भावना का प्रतीक है। उनकी वीरता हमें यह सिखाती है कि सच्चा साहस वह है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखता है। उनकी शहादत आज भी भारतीय सेना के जवानों और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उनका बलिदान हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता और सम्मान की कीमत चुकाने के लिए कुछ लोग अपनी जान तक दे देते हैं। उनकी कहानी को साझा करना न केवल उनकी स्मृति को श्रद्धांजलि है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि देश के लिए समर्पण और बलिदान का कोई विकल्प नहीं है।

कप्तान देविन्दर सिंह अहलावत की शहादत भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास का एक चमकता सितारा है। डेरा बाबा नानक पुल पर उनके साहसिक कार्य और बलिदान ने न केवल मिशन को सफल बनाया, बल्कि देश के लिए उनके समर्पण को अमर कर दिया। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा नायक वह है, जो अपने देश और कर्तव्य के लिए सब कुछ न्योछावर कर देता है।

और पढ़ें :- Lieutenant Arvind Singh Hero of Jetty Mission 1987 लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह: महावीर चक्र से सम्मानित वीर योद्धा की कहानी

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