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Lieutenant Arvind Singh
Maha Veer Chakra

Lieutenant Arvind Singh Hero of Jetty Mission 1987 लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह: महावीर चक्र से सम्मानित वीर योद्धा की कहानी

लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह भारतीय नौसेना के उन नायकों में से एक हैं, जिन्हें उनके अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा और नेतृत्व के लिए महावीर चक्र(MVC), भारत का दूसरा सर्वोच्च सैन्य सम्मान, प्रदान किया गया। उनकी वीरता की कहानी न केवल भारतीय सैन्य इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है, बल्कि यह हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

Lieutenant Arvind Singh

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह
लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह

लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह का जन्म 26 जनवरी, 1958 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ। उनके पिता, डॉ. वीरेन्द्र सिंह चौधरी, एक सम्मानित व्यक्ति थे। अरविन्द ने अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई और खेल-कूद में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। स्कूल में उनकी प्रतिभा ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए, जिसने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया। उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें भारतीय नौसेना की नैवल एकेडमी में प्रवेश दिलाया, जहां उन्होंने सर्वश्रेष्ठ सर्वतोमुखी कैडेट का खिताब हासिल किया। इस उपलब्धि के लिए उन्हें राष्ट्रपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। 1 जुलाई, 1981 को उन्हें भारतीय नौसेना में कमीशन प्राप्त हुआ, जिसने उनके साहसिक जीवन की शुरुआत की।

श्रीलंका मिशन और भारतीय मैरिन स्पेशल फोर्स

भारतीय मैरिन स्पेशल फोर्स
भारतीय मैरिन स्पेशल फोर्स

1987 में लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह को भारतीय मैरिन स्पेशल फोर्स (IMSF) की एक विशेष टीम का प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया गया। यह टीम भारतीय शांति सेना का हिस्सा थी, जिसे श्रीलंका में जटिल और जोखिम भरे मिशनों को अंजाम देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 19 अक्टूबर, 1987 को दोपहर 2:30 बजे, अरविन्द सिंह ने अपनी टीम के साथ जाफना किले से एक महत्वपूर्ण मिशन शुरू किया। इस मिशन में उन्हें उग्रवादियों द्वारा बिछाई गई सुरंगों, छद्म बमों और घरों की छतों से होने वाली भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा।

लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह
लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह

इन सभी खतरों के बावजूद, लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह ने अपने नेतृत्व कौशल और साहस से अपनी टीम को प्रेरित किया। उन्होंने अपनी रणनीति और दृढ़ संकल्प के बल पर इस खतरनाक क्षेत्र पर कब्जा करने में सफलता हासिल की। उनके इस प्रयास का परिणाम यह हुआ कि 20 अक्टूबर को 41 ब्रिगेड और 1 मराठा लाइट इन्फैंट्री के बीच संपर्क स्थापित हो सका, जो मिशन की सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।

गुरु नगरघाट जेटी मिशन/Guru Nagarghat Jetty Mission

21 अक्टूबर, 1987 की रात को लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह और उनकी टीम को एक और चुनौतीपूर्ण मिशन सौंपा गया। उन्हें जाफना में गुरु नगरघाट जेटी को नष्ट करने और उग्रवादियों की शीघ्रगामी नावों को खत्म करने का आदेश मिला। इस मिशन में उनकी टीम ने घाट को भारी नुकसान पहुंचाया और छह नावों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसके लिए उनकी टीम ने पानी के नीचे लगभग आधा किलोमीटर तैरकर 11 शीघ्रगामी नावों में विस्फोटक चार्जर लगाए।

हालांकि, विस्फोट शुरू होने से पहले उनकी टीम उग्रवादियों की भारी गोलीबारी के घेरे में आ गई। इस संकट की घड़ी में, लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह ने अपने जीवन की परवाह किए बिना शत्रु का ध्यान अपनी ओर खींचा। उन्होंने खुद को गोलियों के सामने लाकर अपनी टीम को बचाने का प्रयास किया, जो उनके बलिदान और साहस का सबसे बड़ा उदाहरण है। उनकी इस वीरता ने मिशन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।।

महावीर चक्र से सम्मान

महावीर चक्र MVC
महावीर चक्र MVC

लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह के इस असाधारण साहस, कर्तव्यनिष्ठा और नेतृत्व के लिए उन्हें महावीर चक्र(MVC) से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनकी वीरता, देशभक्ति और बलिदान की भावना का प्रतीक है। यह पुरस्कार न केवल उनके लिए, बल्कि भारतीय नौसेना और पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।

प्रेरणा

लेफ्टिनेंट अरविन्द सिंह की कहानी हमें सिखाती है कि साहस, नेतृत्व और देश के प्रति समर्पण से कोई भी चुनौती असंभव नहीं है। उनका जीवन और बलिदान हर भारतीय को प्रेरित करता है कि कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं माननी चाहिए। उनकी वीरता की गाथा भारतीय सैन्य इतिहास में हमेशा अमर रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

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