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लांस हवलदार नर बहादुर आले
Maha Veer Chakra

Lance Havildar Nar Bahadur Ale लांस हवलदार नर बहादुर आले: 1987 सियाचिन की बर्फीली चोटियों पर अमर वीरता की दास्तान

लांस हवलदार नर बहादुर आले कल्पना कीजिए, दुनिया की सबसे ऊंची युद्ध भूमि पर, जहां हवा इतनी पतली है कि सांस लेना भी जंग लगता है। बर्फीले तूफान, -50 डिग्री की ठंड, और दुश्मन की गोलियां हर पल जान लेने को बेताब। ऐसे ही सियाचिन ग्लेशियर पर, 23-24 सितंबर 1987 की वो काली रात में, एक नेपाली मूल का साधारण सिपाही, लांस हवलदार नर बहादुर आले, ने अपनी जान की बाजी लगाकर भारतीय सेना की चौकी को बचाया। मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित, नर बहादुर आले की कहानी सिर्फ वीरता की नहीं, बल्कि एक इंसान के अटूट हौसले और देशभक्ति की है। आज, जब हम आराम की जिंदगी जी रहे हैं, उनकी शहादत हमें याद दिलाती है कि आजादी की कीमत क्या होती है। यह ब्लॉग उनकी भावुक गाथा को समर्पित है – एक ऐसी कहानी जो दिल को छू लेती है।

मिट्टी के खिलौनों से सेना की वर्दी तक

लांस हवलदार नर बहादुर आले
लांस हवलदार नर बहादुर आले
15 जुलाई 1954 को, नेपाल के दैलेख जिले के छोटे से गांव खेतर में, बाल बहादुर आले के घर एक बेटा पैदा हुआ। नाम रखा नर बहादुर। गांव की हरी-भरी वादियां, नदियों का कलकलाना, और परिवार की सादगी भरी जिंदगी – यही था उनका बचपन। लेकिन नेपाल के उन पहाड़ी इलाकों में, जहां गरीबी और कठिनाइयां आम हैं, नर बहादुर आले का मन हमेशा कुछ बड़ा करने को बेचैन रहता था। उनके पिता बाल बहादुर, एक मेहनती किसान, ने उन्हें सिखाया कि मेहनत और हिम्मत से हर मुश्किल हल हो सकती है। उम्र के सत्रहवें बसंत में, 15 जुलाई 1972 को, नर बहादुर आले ने भारतीय सेना में कदम रखा। 3/4 गोरखा राइफल्स – वो रेजिमेंट जो गोरखाओं की बहादुरी के लिए मशहूर है। नेपाली खून में बहने वाली वो जंगजू वीरता, जो कभी पीछे नहीं हटती। ट्रेनिंग के दिनों में, वो हमेशा सबसे आगे रहते। साथी सिपाहियों को हंसाते, लेकिन ड्यूटी पर लोहे जितने सख्त। कल्पना कीजिए, एक युवा लड़के का वो सपना – मां-बाप का नाम रोशन करना, और अगर जरूरत पड़ी तो देश के लिए जान देना। सियाचिन की ठंड ने उनकी परीक्षा ली, लेकिन उन्होंने कभी सिर नहीं झुकाया।

सियाचिन की कठोर जंग: जहां मौत भी सांस लेती है

सियाचिन
सियाचिन
1987 का साल। ऑपरेशन मेघदूत के तहत भारतीय सेना सियाचिन पर काबिज थी, लेकिन पाकिस्तानी घुसपैठिए हर मौके का फायदा उठाते। बिलाफंडला (बिला फोडला) की वो महत्वपूर्ण चौकी – ऊंची चोटी पर बसी, जहां हवा भी दुश्मन लगती है। लांस हवलदार नर बहादुर आले को मीडियम मशीन गन डिटैचमेंट की कमान सौंपी गई। उनकी गन, वो हथियार जो चौकी की ढाल था। दिन-रात बर्फ से लड़ना, ऑक्सीजन की कमी से जूझना, और फिर दुश्मन की नजरों का इंतजार। 23 सितंबर की रात, अंधेरा घना था। अचानक, दुश्मन ने भारी तोपखाने की बौछार शुरू कर दी। गोलियां आसमान से बरस रही थीं, और साथ ही सैकड़ों की तादाद में पाकिस्तानी सैनिक चौकी पर टूट पड़े। नर बहादुर आले की मशीन गन गरजी। सटीक निशाना, लगातार गोलियां – हमला रुक गया। लेकिन ये तो शुरुआत थी। 24 सितंबर को, सुबह होते ही दूसरा हमला। इस बार और भयानक – रॉकेट लॉन्चर, तोपें, और पैदल हमलावर। चौकी हिलने लगी। एक गोला ऐसा आया कि गन क्रू बिखर गया। नर बहादुर के बाएं पैर पर सीधा वार – हड्डियां चकनाचूर, खून की धार बहने लगी। दर्द इतना कि कोई और तो चीख उठता, लेकिन नर बहादुर? वे चुपचाप उठे। खून से लथपथ, पैर घसीटते हुए, नर बहादुर आले ने मशीन गन उठाई। कूल्हे पर लादकर, 50 मीटर दूर रुके दुश्मन पर गोलियां बरसाईं। कम से कम 15 दुश्मन ढेर। हमला टूट गया। साथी हैरान – “भाई, पीछे हट जाओ, मेडिकल मदद लो!” लेकिन नर बहादुर आले ने इंकार कर दिया। “चौकी को खतरा है, मैं हटूंगा नहीं।” स्थिति की गंभीरता देखी, और दो और हमलों को अपनी गन से रोका। आखिरकार, घावों ने साथ देना छोड़ दिया। नर बहादुर आले की शहादत हो गई। लेकिन उनकी वो आखिरी लड़ाई, सियाचिन की बर्फ पर अमिट निशान छोड़ गई। सोचिए, एक इंसान कैसे इतना मजबूत हो सकता है? खून बह रहा हो, दर्द चीर रहा हो, फिर भी देश पहले।

महावीर चक्र: देश का गौरव

महावीर चक्र MVC
महावीर चक्र MVC
नर बहादुर की शहादत की खबर जब नेपाल के खेतर गांव पहुंची, तो पूरा गांव सन्न रह गया। पिता बाल बहादुर की आंखों में आंसू, मां का सीना विदीर्ण। लेकिन साथ ही, गर्व भी। राष्ट्रपति ने मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया – वो सम्मान जो ‘महा वीर’ कहलाता है। भारत का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य पुरस्कार, जो दुश्मन के सामने असाधारण बहादुरी के लिए मिलता है। नर बहादुर की वो गन आज भी सियाचिन की चौकियों में प्रेरणा है। गोरखा रेजिमेंट के जवान उनकी कहानी सुनाते हैं, और आंखें नम हो जाती हैं। उनकी शहादत ने साबित किया कि सीमाएं सिर्फ जमीन पर नहीं, दिलों में भी खींची जाती हैं। नेपाली मूल का ये सिपाही, भारतीय सेना का लाल। आज, जब सियाचिन पर शांति की बात होती है, नर बहादुर की याद हमें चेतावनी देती है – शांति की कीमत साहस से चुकानी पड़ती है।

आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा: हौसले की वो मशाल

लांस हवलदार नर बहादुर आले
लांस हवलदार नर बहादुर आले
नर बहादुर आले जैसी कहानियां हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। आज के युवा, जो एसी कमरों में बैठे हैं, क्या वे ऐसी ठंड सह सकते हैं? उनकी वीरता सिखाती है कि जिंदगी में असली जीत दर्द सहने में है। परिवार से दूर, मौत के मुंह में झांकते हुए भी मुस्कुराना। अगर आप सियाचिन घूमने जाएं, तो बिलाफंडला की चोटी पर खड़े होकर महसूस कीजिए – वो हवा में अभी भी उनकी सांसें गूंजती हैं। उनकी याद में, हम सबको वादा करना चाहिए: देश के लिए कुछ न कुछ करेंगे। चाहे छोटा ही सही। लांस हवलदार नर बहादुर आले की शहादत एक दर्द भरी, लेकिन गर्वित कहानी है। सियाचिन की बर्फीली रातों में, उन्होंने साबित किया कि सच्चा सिपाही कभी हार नहीं मानता। महावीर चक्र सिर्फ एक मेडल नहीं, बल्कि लाखों दिलों का सम्मान है। आज, 2025 में भी, जब हम उनकी जयंती मनाते हैं, आइए नमन करें। जय हिंद! जय गोरखा! Follow us on :- शौर्य गाथा Shaurya Saga | Facebook also read :- देविन्दर सिंह अहलावत Captain Devinder Singh Ahlawat Hero of 1971 India-Pak war: महावीर चक्र for more :- Shaurya naman is the best ngo for martyrs family and soldier

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