‘पीठ पर नहीं, सीने पर खाई गोलियां’: एक असाधारण नायक की कहानी

भारत-पाक युद्ध 1965 के इतिहास में कुछ ऐसी कहानियाँ दर्ज हैं, जो अदम्य साहस, उत्कृष्ट नेतृत्व और मातृभूमि के प्रति सर्वोच्च बलिदान की मिसाल पेश करती हैं। इन्हीं गाथाओं में एक स्वर्णिम अध्याय है मेजर आसा राम त्यागी (आई सी 13056) का, जिन्हें उनके असाधारण शौर्य के लिए मरणोपरांत देश के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार, महावीर चक्र से अलंकृत किया गया। उनका जन्म 02 जनवरी, 1939 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के फतेहपुर गाँव में श्री सगुहा सिंह त्यागी के घर हुआ था। 17 दिसंबर, 1961 को उन्हें जाट रेजिमेंट में कमीशन मिला, जिसके बाद उन्होंने अपनी वीरता से भारतीय सेना के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी।
डोगराई की भीषण लड़ाई: जहाँ शौर्य की अग्नि धधकी

1965 का युद्ध। 3 जाट बटालियन को डोगराई गांव पर दूसरा आक्रमण सौंपा गया। “ए” कंपनी की कमान मेजर त्यागी के हाथों में थी। उनका लक्ष्य—गांव का पूर्वी छोर।
वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, डोगराई गाँव पर कब्ज़ा करना भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था। यह गाँव लाहौर के काफी करीब होने के कारण सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। 3 जाट बटालियन को आक्रमण के दूसरे दौर में यह कठिन दायित्व सौंपा गया। मेजर त्यागी के नेतृत्व में “ए” कंपनी को डोगराई गाँव के पूर्वी छोर पर अधिकार करना था।
वहां दुश्मन ने पिलबॉक्स, रिकॉयललेस गनें और एक पूरी टैंक ट्रूप तैनात कर रखी थी। एक कंपनी (प्लाटून से कम) डटी हुई थी। रात का अंधेरा, दुश्मन की चौकसी, और मौत का साया—फिर भी मेजर त्यागी ने अपनी अग्रिम प्लाटून को आगे बढ़ाया।
घायल शेर का अविश्वसनीय पराक्रम

21 सितंबर, 1965 की रात, मेजर त्यागी ने कंपनी की अग्रिम प्लाटून का नेतृत्व करते हुए लक्ष्य पर धावा बोल दिया। यह जानते हुए भी कि सामने दुश्मन की मजबूत सुरक्षा पंक्ति है, वह निर्भीकता से आगे बढ़े। जैसे ही उन्होंने एकत्र होने का स्थान छोड़ा, दो गोलियां उनके दाहिने कंधे पर आ लगीं। किसी भी सामान्य सैनिक को रोकने के लिए यह घाव काफी था, पर मेजर त्यागी ने उसकी पूरी तरह अनदेखी कर दी।
आगे बढ़ते हुए उन्हें एक और गोली लगी। लगातार चोटों के बावजूद, इस वीर योद्धा ने अपना कदम नहीं रोका। उन्होंने दुश्मन के टैंकों की ओर दौड़ लगाई, टैंकों के कर्मीदल पर बम फेंके और आश्चर्यजनक रूप से दो टैंकों को सही-सलामत पकड़ लिया। इसके बाद एक भीषण हाथापाई की मुठभेड़ में, मेजर त्यागी ने स्वयं एक पाकिस्तानी मेजर को गोली मारकर, उस पर संगीन घोंप दी।
सर्वोच्च बलिदान और अमर प्रेरणा
मेजर त्यागी ने तब तक अपनी सेना का नेतृत्व करना जारी रखा, जब तक उन्हें दो और गोलियों के घाव नहीं लगे और वह अचेत होकर गिर नहीं पड़े। उनका शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था। उनके एक साथी ने बाद में बताया कि मेजर त्यागी ने पीठ पर नहीं, सीने पर गोलियां खाई थीं।
अपने मेजर की अतुलनीय वीरता और प्रेरणा से प्रेरित होकर, उनके सैनिकों ने बहादुरी से लड़ना जारी रखा और अंततः लक्ष्य पर अधिकार कर लिया। यह मेजर आसा राम त्यागी का नेतृत्व ही था, जिसने गंभीर परिस्थितियों में भी बटालियन को जीत दिलाई।
मरणोपरांत महावीर चक्र

मेजर आसा राम त्यागी को उनके असाधारण साहस, कर्तव्य के प्रति समर्पण और नेतृत्व के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से अलंकृत किया गया। उनका यह बलिदान केवल एक जीत नहीं, बल्कि भारतीय सेना की अविश्वसनीय युद्ध भावना का प्रतीक है। आज भी, उनकी शौर्य गाथा भारतीय सैनिकों को निस्वार्थ सेवा और सर्वोच्च बलिदान की प्रेरणा देती है।
मेजर आसा राम त्यागी: एक ऐसा नाम जो हमेशा 1965 युद्ध के एक चमकते सितारे के रूप में याद किया जाएगा। उनका जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्र की रक्षा में कोई भी कीमत बड़ी नहीं होती।
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